आर्य और काली छड़ी का रहस्य-26
अध्याय-9
रहस्यमई किला
भाग-1
★★★
चमकता हुआ गलियारा सामान्य था। चौड़ाई एक समान थी। नीचे का फर्श संगमरमर का बना हुआ था। दीवारें जरूर कटे-फटे पत्थरों की बनी हुई थी, ठीक वैसे ही जैसे यहां के बाकी गलियारों की दीवारे थी।
गलियारे की चौड़ाई लगभग 1 मीटर के आसपास होगी इस वजह से तीनों आराम से उस गलियारे में चल रहे थे। थोड़ा आगे चलने पर हिना कुछ असहज महसूस करने लगी।
हिना कुछ देर चलने के बाद बोली “मेरा यहां दम घुट रहा है। सांस भारी हो रही है।”
आर्य ने उसकी हालत देखी “यहां गलियारे काफी घुटन भरा हैं, किला ज्यादातर बंद रहता है तो इस वजह से यहां प्राप्त ऑक्सीजन भी नहीं, शायद इस गलियारे को पार करते ही हम किसी खुली जगह पर पहुंच जाएं।”
हिना ने सांस लिया “हममम। मुझे अक्सर भीड़भाड़ वाली जगहों पर घुटन होने लगती है।”
आयुध ने कहा “तुम खुद पर थोड़ा नियंत्रण रखो। गलियारा खत्म होते ही हम किसी अच्छी जगह पर ही पहुंचेंगे।”
तीनों लगातार उस गलियारे में चलते रहे। काफी देर चलने के बाद सब गलियारे की दूसरे सिरे पर पहुंच गए।
हिना वहां पहुंचते ही तेजी से बोली “रुको, संभलकर।” उसने आर्य का हाथ पकड़ा और उसे तेजी से पीछे की और खींचा। ऐसा ही उसने आयुध के साथ किया।
तीनों बिना फर्श वाले कमरे के किनारे पर खड़े थे और आर्य अंदर जाने ही वाला था की हिना ने उसे पीछे खींच लिया। आयुध भी आगे जाता जाता बचा था।
हिना ने दोनों को संभालते हुए कहा “ तुम दोनों को संभलकर चलना चाहिए। अभी तुम दोनों ही नीचे गिरने वाले थे।”
आयुध मुस्कुराया “मुझे नहीं पता था यह बिना फर्श वाला कमरा इतनी जल्दी आ जाएगा।”
आर्य ने कहा “मेने भी इस बारे में अंदाजा नहीं लगाया था। यह तो काफी जल्दी आ गया।”
हिना ने रोशनी उस कमरे की ओर की गिराई। यह बिना फर्श वाला कमरा एक गहरी खाई थी, जिसकी गहराई नीचे काफी तक थी।
हिना आर्य और आयुध को समझाने लगी “इस कमरे के दूसरे छोर पर गलियारा वापस शुरू हो जाता है अर्थात यह जगह कमरे के भांति है, ऊपर छत है तो नीचे फर्श जो गायब हैं। इसमें दो दरवाजे है, एक जहां से गलियारा आता है और एक जहां से दूसरा गलियारा फिर से शुरू होता है। दोनों के बीच पर्याप्त दूरी है”
आर्य को सब समझ में आ गया। आयुध ने भी इसे समझ लिया था। आर्य बोला “इस रास्ते को पार करने का कोई तरीका जरूर यहां होगा। अक्सर पुरानी किलो में कुछ खुफिया रास्ते छुपा कर रखे जाते हैं।”
आर्य इधर उधर देखने लगा। हिना भी देखने लगी। आयुध ने भी अपनी नजरें हर संभावित दिशा की तरफ बढ़ाई जहां वह बढ़ा सकता था।
हिना ने देखने के बाद कहा “इसे पार करने का कोई अलग रास्ता नहीं है, हमें उड़ कर जाना होगा। किताब में भी यही लिखा था। यहां से सिर्फ वही आगे जा सकता है जिसे उड़ने की कला आती हो”
आर्य सोचने लगा “मगर हमसे तो किसी को भी उड़ना नहीं आता। तो आखिर इसे कैसे पार किया जाएगा”
आयुध ने भी आर्य के बात में बात मिलाई “हां बताओ हिना, हम इसे आखिर कैसे पार करेंगे?”
हिना ने कहा “शायद मेरे पास एक छोटा सा रास्ता है।” इतना कहकर उसने अपने हाथों को गोल गोल एक अलग पैटर्न में घुमाना शुरू कर दिया।
उसे ऐसा करते देख आर्य ने पूछा “यह तुम क्या कर रही हो?”
हिना ने जवाब दिया “रास्ता बना रही हूं।”
हिना हाथों को घुमाने के साथ-साथ अपनी आंखों को दवाब भी देने लगी। देखते ही देखते उसका शरीर नीली रोशनी से चमकने लगा। उसके हाथ भी निली रोशनी से चमकने लगे। जल्द ही हिना ने वह रोशनी उस बिना फर्श वाली जगह पर गिरा दी जिससे वहां ईटो वाले फर्श की जगह रोशनी की कल्पनिक ईटों का एक नीले रंग का फर्श बन गया।
आयुध और आर्य दोनों खुश हो गए। आयुध ने कहा “वाह हिना, इससे तो हम काफी आसानी से आगे निकल जाएंगे।”
हिना के चेहरे पर भी खुशी थी “चलो अब आगे चलें।”
आयुध ने सबसे पहले आगे जाने की शुरुआत की। जल्द ही वह दूसरी ओर था। उसके बाद हिना गई।
आर्य भी उस नीले फर्श पर आगे की ओर बढ़ने लगा। मगर अभी आर्य आधे रास्ते तक ही पहुंचा था की नीले रंग की ईंटों का फर्श गायब होने लगी। उसने पीछे की तरफ से गायब होने की शुरुआत की थी
हिना यह देखते ही तुरंत छकपका गई “ओ नो, लगता है मेरा जादू खत्म हो रहा है जल्दी आओ” वो अपने हाथों की तरफ देखने लगी जो अब नीली रोशनी से चमकना कम हो रहे थे।
इससे पहले कि फर्श पूरा गायब होता आर्य ने दौड़ना शुरू किया और जैसे तैसे कर फर्श के खत्म होने से पहले हिना के पास पहुंच गया। वहां हिना और आयुध दोनों ने ही आर्य को पकड़ लिया।
सभी ने एक साथ राहत की सांस ली।
आर्य ने सांस लेते हुए कहा “आज तो तुम मुझे मरवा ही देती। तुम्हें जादू आता है अच्छी बात है, मगर अभी तो इसमें और परफेक्ट होना पड़ेगा”
हिना भी सांस ले रही थी तो उसने सांस लेते हुए ही जवाब दिया “मैं अभी अपनी तरफ से कोशिश कर रही हूं। हर जक चीज को सीखने में समय लगता है, इसे भी सीखने में समय लगेगा।”
आर्य सांस लेकर वापस सीधा खड़ा हो गया। “चलो कोई बात नहीं। अब आगे के सफर पर ध्यान देते हैं। हमने शायद किले के इस पड़ाव को पार कर लिया है। अब अगले पड़ाव की बारी है।”
तीनों की एक बार फिर से आगे बढ़ने लगे। अब तीनों ही अगले पड़ाव के लिए थे।
★★★
लगभग काफी देर चलने के बाद आर्य ने कहा “इन गलियारे की दीवारों पर ठीक वैसे ही लैंप टंगे हुए हैं जैसे लैंप पहले आचार्य वर्धन के कमरे के गलियारो में मिले थे।”
हिना जवाब देते हुए बोली “हमारे आश्रम की आगे की क्लासों में इसके बारे में बताया गया था। यह यहां के खास लैंप है, जो बिना ईंधन के हजारों सालों तक रोशनी दे सकते हैं।”
आयुध ने कहा “इस तरह के लैंप तो हमारे भोजनालय में भी हैं। मगर मैंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि यह इस तरह के होंगे।”
हिना बोली “तुम नहीं जानते हमारा आश्रम कितने सारे रहस्यों से भरा हुआ है। अगर गौर से देखोगे तो पता चलेगा यहां की हर एक चीज अजीब है, वह चीज भी जो सामने से देखने पर सामान्य लगती है।” इसके बाद हिना ने आर्य से कहा “आगे बढ़ने से पहले मैं तुम्हें बता दूं, हम अभी मौत के गलियारे से गुजरने वाले हैं, और मौत के गलियारे का एक ही मतलब है 'मौत'।”
आयुध हल्के स्वर में बोला “यार तुम यह भारी-भारी शब्द का इस्तेमाल कर डराओ मत। जब हम यहां किले में आ रहे थे तब भी तुमने इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया था, और जब हम किले में आ चुके हैं तब भी तुम इन शब्दों का इस्तेमाल कर रही हो।”
हिना इतराती हुई बोली “मैं तो बस तुम दोनों को बता रही थी। और मैंने खुद से भी तुम लोगों को कुछ नहीं बताया, जो किताब में लिखा था वही बताया। किताब में लिखा था मौत के गलियारे का मतलब है मौत।”
अब तक किले के दो पड़ाव पूरे हो चुके थे। पहला पड़ाव जिसमें दरवाजे को खोलना था और दूसरा पड़ाव जिसमे उस बिना फर्श वाले कमरे को पार करना था। जल्द ही दोनों उस गलियारे से निकल चुके थें।
गलियारे के निकलते ही उन तीनों के सामने जो रास्ता आया वो पत्थर के टूटे हुए टुकड़ों से बना हुआ था। उन पत्थर के टुकड़ों को भारी दबाब देकर जमाया गया था। मगर यह रास्ता कई मायनों में अजीब सा था। इस रास्ते की आस पास किसी भी तरह की दीवार नहीं दिखाई दे रही थी। बस अंधेरा था जिसके बीच में से होकर यह रास्ता आगे जा रहा था। रास्ते के दोनों ही और सिवाय अंधेरे की और कुछ भी नहीं था।
नीचे जमीन पर जो पत्थर पड़े थे उस पर तरह-तरह के निशान बने हुए थे। हर एक निशान का रूप अलग था और उसका मतलब भी अलग अलग।
तीनों की की नजर उन निशानों पर पड़ी और तीनों उन निशानों पर पैर रखते हुए आगे बढ़ने लगे।
आर्य आगे चलता हुआ बोला “क्या यही वह मौत का गलियारा है, क्योंकि यहां मुझे किसी तरह का खतरा नहीं दिख रहा।”
हिना ने ऊपर देखा “अपने ऊपर देखो, ऊपर देखने पर तुम्हें ऐसा लग रहा होगा कि हम खुले आसमान में चल रहे हैं पर नहीं ऐसा नहीं है। यह इस मौत के गलियारे का भ्रामक जाल है जो एक खाई जैसा दृश्य पैदा कर रहा है।
हिना अभी बातें ही कर रहे थे कि तभी आर्य ने एक निशान पर पैर रख दिया। आर्य के पैर रखते ही वहां की जमीन खिसक गई और तीनों उसके अंदर जा गिरे।
तीनों के गिरते ही कुछ पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े भी उनके ऊपर आ गिरे। छोटे पत्थर के टुकड़ों से आर्य को तो कोई फर्क नहीं पड़ा पर हिना बेहोश हो गई। वही आयुध अलग जगह गिरा था तो वह पत्थर के टुकड़ों से बच गया।
'हिना, हिना, तुम ठीक तो हो ना' आर्य ने गिरते ही खुद को संभाला और हिना से पूछा। हिना बेहोश थी। आयुध भी जल्दी हिना के पास आया और उसे संभाला।
आयुध आर्य से बोला “ये बेहोश है”
आर्य ने हामी भरी और अपने इधर उधर देखा। वह किसी तहखाने जैसी दिखने वाली जगह में थे। आसपास कुछ कंकाल दीवारों पर टंगे हुए थे जो शायद यहां पहले आ चुके लोगों के थे। या वह अंधेरी परछाइयों के भी हो सकते हैं। क्योंकि कंकाल इंसानों के नहीं लग रहे थे।
तहखाने में एक छोटा सा दरवाजा बना हुआ था जो आगे की ओर जा रहा था। इसी दरवाजे के दाई और एक छोटा खुफिया दरवाजा भी था जो टूटा हुआ था। यह दरवाजा सामने की एक खुली जगह की ओर जा रहा था।
आर्य ने हिना को जगाने की कोशिश की लेकिन हिना की बहोशी ज्यादा ही गहरी थी। उसने आयुध से कहा “मेरे ख्याल से हमें कुछ देर के लिए हिना कि होश में आने का इंतजार करना होगा....।”
“ हम अगर यहां पानी की तलाश करें तो वह भी बढ़िया रहेगा। पानी के छिटें मारने पर इसे जल्दी होश आ जाएगा।”
आर्य ने गहरी सांस ली और खड़ा होकर जगह का मुआयना करने लगा। उसे आसपास तो कहीं पानी नहीं मिला मगर आगे उसे एक तलाब जैसी जगह दिख रही थी। उसने आयुध से कहा “तुम यहां हिना के पास रहकर उसका ध्यान रखना। मैं तब तक पानी की तलाश करके आता हूं...”
इतना कहकर वह सामने के टूटे हुए दरवाजे की तरफ चल पड़ा। फिर उसने टूटे हुए दरवाजे को पार किया और देखते ही देखते आयुध की आंखों से ओझल हो गया। वह टूटे हुए दरवाजे के दुसरी और चला गया था।
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